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Sunday, April 26, 2009

........‘एक और सफर’ का शेषांश

21 जनवरी की सर्द सुबह है। हम अपने सफर की तैयारी में जुट जाते हैं। ‘कंचन’ को भी आज हल्द्वानी एम बी कालेज में बी0एड0 में एडमिषन लेना है। वो आज हल्द्वानी चलेगा। तो भीमताल तक का सफर हमें साथ ही करना है। ‘मनोज’ हमें अपनी मोटरसाइकल के साथ अल्मोड़ा किताबघर के पास मिलेगा। लेकिन कंचन को अपने स्ववित्तपोषित बी0 एड0 में एडमिषन की फाॅर्मलिटीज के कुछ काम निपटाने हैं। जैसे सी0 एम0 ओ0 से मेडिकल सार्टिफिकेट बनवाने का और एम बी कालेज के नाम 29,000रू0 का ड्राॅफ्ट बनवाने का । कुमाऊॅ विष्वविद्यालय ने पैसों में डिग्री बेचने का कुछ सभ्य और माडर्न तरीका इज़ाद कर लिया है। इसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस बीच बी0 एड0 की बड़ी होड़ है। रोजगार संबंधी गम्भीर असुरक्षा से भयभीत लगभग सभी ग्रेजुएट बी0 एड0 कर ही लेना चाहते हैं। चाहे इन्हीं के बी0एड0 कर चुके सीनियर्स अपने रोजगार की मांग को लेकर लम्बे समय से आन्दोलित हंै, लाठियां खा चुके हैं, जेल जा चुके हैं.................. खैर! उम्मींद पर दुनियां कायम है। लेकिन जो बात इधर गम्भीर है वो यह है वो है कि बी0 एड0 करने की इस होड़ के चलते अन्य क्षेत्रों की बेहतरीन प्रतिभाओं का गजब ह्रास हो रहा है और अध्यापन में कतई भी शौक न रखने वाले लोगों की एक बड़ी फौज आने वाली पीढ़ियों को पढ़ाने के लिए तैयार हो रही है। ...............खैर!........... राम भरोसे हिन्दुस्तान। बहरहाल ‘कंचन’ के इन्हीं कामों को निपटा कर हम भीमताल की ओर रवाना होेते हैं।
अल्मोड़ा छोड़ते-छोड़ते कर्बला से लोधिया होते-होते काकडीघाट कब पहुंच जाते हैं पता नहीं चलता। काकड़ीघाट, में नदी के पानी में झांकते मन्दिर के प्रतिबिम्ब के किनारे-किनारे बहती सर्पाकार सड़क हमें खैरना, गरमपानी, कैंचीधाम से होते भवाली छोड़ देती है। भवाली खूबसूरत और ठण्डा शहर है। इस बार एक खास बात हुई है जनवरी की 21 तारीख को ही यहां काफल मौजूद हैं। मौसम में आऐ परिवर्तन के कारण ही यह हुआ है कि काफल और बुरांश समय से पहले ही जंगलों को लाल कर रहे हैं। यहां के दैनिक अख़बारों में यह ख़बर के रूप में प्रमुखता से है। भवाली भी एक तिराहा है। एक सड़क नैनीताल की ओर कटती है और दूसरी ओर से आप भीमताल जा सकते हैं और दोनों ही सड़के अलग अलग रूट से हल्द्वानी भी जाती हैं। यहां से भीमताल और नैनीताल दोनांे ही जगहें 11 कि0 मि0 की दूरी पर हैं। हम भीमताल की ओर चलते हैं। दूर से ही गहरे हरे रंग के आगोष में सूरज की रोषनी का परावर्तन करता ताल चमक रहा है। उसकी चमक उधर देखने को मजबूर करती है। धीरे-धीरे हम ताल की ओर बड़ते हैं। मल्लीताल में भी एक तिराहा हैै। यहां से एक सड़क तल्लीताल होते हुए हल्द्वानी की ओर जाती है। और दूसरी सड़क ‘नौकुचिया ताल’ की ओर। आज की रात ‘मनोज’ और मेरा रूकना ‘नौकुचिया ताल’ रोड पर ही मेरी ‘मौसी जी’ के घर पर रहेगा। ‘कंचन’ को हल्द्वानी के लिए विदाकर हम ‘मौसी’ जी के घर की ओर रवाना होते हैं।
सूरज के ढलते जाने का वक्त है। हम अब तक सफर के बाद से काॅफी सुस्ता चुके हैं। डा0 याषोधर मठपाल जी का घर भवाली रोड पर ही स्थित है। पहले भी मेरा एक बार वहां जाना हुआ है। मैंने उनके अद्भुत् सृजन व संरक्षण कर्म को देखा है। लेकिन अबकी बार उनसे बातचीत करना, मेरा स्वार्थ है। उनसे अगले दिन का अॅप्वाइंटमेंट लेने के मकसद से हम उनके घर की ओर चल पड़ते हैं।
‘भीमताल’! इस कस्बानुमा नगर में सुनियोजित रूप से बसासत की अपार संभावनाऐं हैं। यहां झील के ऊपरी छोर मल्लीताल से भवाली की ओर प्लेन्स नुमा सपाट जमींन है और ऐसे ही ‘नौकुचिया ताल‘ की ओर जमींन की स्थिति भी बसासत के हिसाब से अच्छी ही है। ‘भीमताल’ की एक और खास बात है कि ये कुमाऊॅ के सबसे बड़े बाजार हल्द्वानी से महज लगभग 25 कि0मी0 ही दूर है। सुविधाओं और मैदानी इलाके से नजदीकी और पहाड़ की खूबसूरती ‘भीमताल’ को महत्वपूर्ण बना देती है। इसी कारण ‘भीमताल’ अब बाहरी लोगों के आकर्षण का प्रतिनिधि केन्द्र बनने लगा है। न सिर्फ घूमने के लिए बल्कि यहीं बस जाने के लिए भी। लेकिन इस सब के बीच यहां भू-माफियाओं का भी प्रकोप बड़ा है। ये चिन्ताजनक बात है।
शाम के साढ़े पांच बज चुके हैं। हम डा0 मठपाल जी के आवास के पास पहुंचते हैं। सड़क पर ही उनकी गैलेरी का बोर्ड लगा हुआ है। ‘मठपाल्स लोक संग्रह’ ‘म्यूजियम आॅफ फोक कल्चर एण्ड आर्ट गैलेरी’। यहीं से एक सीमेण्टेड ढलानदार सड़क लगभग 50 मी0 नीचे उतरती है। वहां बड़े गेट पर फिर से संस्था का नाम स्वागत कर रहा है। गेट पर ताला है। गेट पर ही नीचे गैलरी के खुलने और बन्द होने का वक़्त लिखा है। हम बन्द होने के 4 बजे के इस वक्त से बहुत लेट हैं। सो अभी मिलने का विचार छोड़ हम अगले दिन ही मुलाकात का कार्यक्रम बनाते हैं। अगले दिन सुबह 11 बजे गैलरी के खुलने के समय में वहां पहुंचते हैं लेकिन ताला अब भी बरकरार है। पड़ौस के घर की एक महिला बताती हैं कि- मठपाल जी शहर से बाहर हैं। वे देहरादून, अपनी पत्नी के इलाज के लिए गए हुए हैं। शायद रविवार तक लौट आऐंगे। अब हमारा कार्यक्रम पूरी तरह बिगड़ चुका है। अब डा0 मठपाल से अब रविवार को उनके देहरादून से लौट कर आने के बाद ही मिलने का हमने कार्यक्रम बनाया। मनोज को अपने किसी जरूरी काम से अल्मोड़ा वापस लौटना था। हमने तय किया डा0 यशोधर मठपाल के लौट आने के बाद हम फोन में बात कर फिर से भीमताल में मिलंेगे और उनसे मुलाकात करेंगे। मनोेज वापस लौट गया। मेरा सफर जारी था। मैं अगले दिन ‘हल्द्वानी’ की ओर रवाना हुआ। कुमाऊॅ की मण्डी है हल्द्वानी। एक अजीब तासीर है इस शहर की। यूं तो ये मैदानी इलाका है। या कहें कि कुमाऊॅ के लोगों के लिए मैदान की शुरूआत यहीं से है। लेकिन यहां पहाड़ बसता है। इस शहर मंे खु़श्बू है पहाड़ की। रंगत है पहाड़ सी।
..............क्रमषः